कारगिल दिवस, जब हमारे देश के कई नौजवानों ने अपने प्राणो की आहुति देकर देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। यह दिवस ऐसे ही वीरों की याद में मनाया जाता हैं। वहीं जब शहीदों की बात हो ऐसे में हरियाणा के अंतरगर्त आने वाले गांव रोहणा के वीरों को याद न किया जाये ऐसा मुमकिन नहीं है।
इस गांव के सैनिकों ने अपने जान पर खेल देश की रक्षा करते हुए अपना देश प्रेम का जीता जागता उदहारण पेश किया था। जिसके बाद इस गांव का इतिहास ही बदला गया, क्योकि, यहां के युवा आजादी की लड़ाई से लेकर कारगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर चुके है।
अगर आप देखेंगे तो गांव की मुख्य सड़क पर शहीदों के स्मारक बनाए गए हैं, जिसमें अभी तक शहीद हुए सैनिकों का विवरण दिया गया है . इसी गांव के 15 लोग आजाद हिंद फौज में देश के दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। आपको बता दें कि कारगिल युद्ध में सबसे कम उम्र में शहीद होने का गौरव प्राप्त करने वाले रविंद्र दहिया इसी गांव के थ। वहीं जानकारी के मुताबिक अब तक गांव के करीबन 50 से ज्यादा लोग देश की सेवा में शहीद हो चुके है।
इस बारे में ग्रामीणों का कहना है कि वह अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं कि इस मिट्टी में उन्होंने जन्म लिया है. प्रथम विश्वयुद्ध हो या फिर चीन, पाकिस्तान के साथ लड़ाई हो, देश की सेवा में हमारे गांव के जवानों का नाम शामिल रहा ह।
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक सभी युद्धों में गांव के वीर सपूतों ने हिस्सा लिया है. इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में भी इस गांव के 12 लोगों के नाम अंकित हैं, जो आज भी रोहणा की गौरव गाथा को चार चांद लगाते हैं. ग्रामीण राम स्वरूप ने साल 1914 की लड़ाई में शहादत पाई. 1930 में रामकिशन, 1941 में दुधे, 1942 में रामकिशन, छोटे व बीर सिंह, 1943 में चंदू, रिसाले, हरिसिंह व रतन, 1971 में सतबीर, 1984 में बिजेंद्र, 1996 में सुरेंद्र, 1999 में रवींद्र व संजीव, 2000 में पवन जीत ने भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए है।
रोहणा गांव के वीर सपूत सिपाही रविंद्र दहिया को देश में सबसे कम उम्र (19 साल) में शहीद होने का गौरव है. वहीं, स्वतंत्रता सेनानियों में भी यह गांव पीछे नहीं है. मामचंद, जुगलाल, महासिंह, सुखदेव, मुंशी, दरियाव सिंह, प्यारे, रणसिंह व स्वतंत्रता सेनानी देव राज सहित 12 नाम शामिल है।