हरियाणा के इस गांव को मिला हैं ” सैनिको की फैक्ट्री” का ख़िताब, हर घर से निकला प्रत्येक सैनिक रहा है जाबाज़

सोने की फैक्ट्री, कोयले की फैक्ट्री इत्यादि नाम तो आपने कई दफा सुने होंगे । मगर कभी आपने सैनिकों की फैक्ट्री के बारे सुना हैं अगर नहीं तो आज हम आपको ऐसे गांव के बारे बताएंगे जो सभी के लिए प्रेणादायक भी हैं। दरअसल, इस गांव को ” सैनिकों की फैक्ट्री ” के नाम से भी सम्बोधित किया जाता हैं। हम बात करे रहे है हरियाणा के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल नूंह जिले का उजीना गांव की।

तकरीबन 12000 की आबादी वाला उजीना गांव लगभग 700 वर्ष पहले बसा था। नूंह जिले के विकसित गांवों में उजीना गांव शुमार है। पूर्व मंत्री स्वर्गीय कंवर सूरजपाल व उनके बेटे सोहना विधानसभा से मौजूदा विधायक संजय सिंह भी इसी गांव से संबंध रखते हैं। उजीना गांव शुरू से ही सुर्खियों में रहा है।

प्रथम विश्व युद्ध हो द्वितीय विश्व युद्ध हो या फिर पाकिस्तान या चीन के साथ भारत का जब भी युद्ध हुआ है। उस युद्ध में इस गांव के रणबांकुरे ने अपनी वीरता का परिचय दिया है। सेवानिवृत मेजर रणसिंह ने 1965 में पाकिस्तान युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। इस गांव के तकरीबन 700 से अधिक जवान सेना में नौकरी कर चुके हैं या अभी भी सैकड़ों की संख्या में नौकरी कर रहे हैं।

आर्मी, नेवी, सीआरपीएफ सहित कई सैनिक व अर्धसैनिक बलों में यहां के जवान आज भी देश की सीमाओं पर तैनात हैं। इस गांव के करीब 250 सेना के जवान सेवानिवृत्त होकर बच्चों को सेना में भेजने के लिए तैयार करते हैं तथा उनका समय-समय पर उत्साहवर्धन करते रहते हैं।

उजीना गांव के युवाओं में व्यायाम करने से लेकर भागदौड़ करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। अग्निवीर योजना के तहत भी तकरीबन 10 बच्चों का चयन अब तक इस गांव से हो चुका है। खास बात यह है कि इतनी बड़ी तादाद में सेना में नौकरी कर रहे या कर चुके जवानों में से अभी तक किसी की शहादत की खबर गांव वालों ने ना सुनी है और ना देखी है।

जिला मुख्यालय नूंह से तकरीबन 10-12 किलोमीटर की दूरी पर नूंह-होडल मार्ग पर उजीना गांव बसा हुआ है। इस गांव में शिक्षा के स्तर से लेकर स्वास्थ्य, खेल इत्यादि की सुविधाएं अन्य गांवों के मुकाबले काफी अच्छी हैं। उसमें सरकार के योगदान के साथ-साथ ग्रामीणों का भी अहम योगदान रहा है। उजीना गांव जिले का एकमात्र ऐसा गांव है, जहां तकरीबन एक ही गांव से 700 जवान देश सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं। गांव के बुजुर्गों को भी अपने गांव के युवाओं पर नाज है।

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