हरियाणा के इस गांव में सालों बाद भीं नहीं फहराया गया तिरंगा, इस नेता के विरोध में तिरंगे से नफरत करने लगे थे ग्रामीण

देश भर में 15 अगस्त को आजादी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। जगह – जगह तिरंगे फहराए जाते हैं। स्कूल- कॉलेज इत्यादि में छात्रों को वीरों की गाथाएं सुनाई जाती हैं। हमारे देश को आज़ाद हुए 77 वर्ष होने चले हैं, मगर आज भी एक हरियाणा का एक गांव हैं जो खुदको गुलाम मानता हैं।

इतना ही नहीं यहां तो देश आज़ाद होने के बाद भी कभी तिरंगा नहीं फहराया जाता हैं। दरअसल, गांव के लोगों की मांग थी की आजादी के इतने साल बाद भी उन्हें मूलभूल सुविधाएं नहीं मिली थी। यही कारण हैं कि रोहनात गांव में इतने सालों तक गांव में तिरंगा नहीं फहराया गया।

हरियाणा के रोहनात गांव की आबादी 4200 के करीब है और अंग्रेजों ने इस गांव में जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार किया था. इस गांव के लोगों को 1857 के क्रांति में भाग लेने की सजा दी गई था। गांव के लोगों के मुताबिक हांसी में अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी. साल 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी हिसार- हांसी भी पहुंची थी।

उन दिनों देश को आजाद करवाने को लेकर 29 मई, 1857 को मंगल खां के विरोध का साथ देते हुए रोहनात के लोगों ने स्वामी बरण दास बैरागी, रूपा खाती व नौंदा जाट सहित हिंदू व मुस्लिम एकत्रित होकर हांसी पहुंचे.

रोहनात के अलावा आस-पास के गांवों के लोगों ने भी अंग्रेजों पर हमला कर दिया, जिसमे हांसी व हिसार के दर्जन-दर्जन भर अंग्रेजी अफसर मारे गए.

इस दौरान क्रांतिकारियों वीरों ने जेल में बंद हजारों कैदियों को रिहा कर दिया और अंग्रेजी सल्तनत के खजाने भी लूट लिया, लेकिन, जब इस घटना की जानकारी अंग्रेज आला अधिकारियों को इस बात की सूचना मिली तो विरोध को रोकने के लिए एक पलाटून को जरनल कोर्ट लैंड की अगुवाई में हांसी भेज दिया था।

इस हमले के बाद अंग्रेजों ने भी गांव पुठी मंगल क्षेत्र में तोपों से हमला करना शुरू कर दिया. गांव रोहनात के सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इतना ही नहीं गांव के बिरड़ दास बैरागी को तोप पर बांध कर उनके शरीर को चीथड़ों की तरह उड़ा दिया. गांव की कई महिलाओं ने उस दौरान अपनी इज्जत बचाने के लिए गांव के कुंए में कूद कर अपनी जान गवा दी.

आपको बता दें कि अंग्रेजों को गुस्सा इतने में शांत नहीं हुआ. उन्होंने विरोध करने वाले लोगों को अपने साथ ले गए, जहां पर उनके शरीर के उपर से रोड़ रोलर फेर दिया, जिससे यह सडक़ खून से लथपथ होकर लाल हो गई और वर्तमान में भी यह सडक़ लाल सडक़ के नाम से जानी जाती है और इस सड़क को रोहनात व आसपास के ग्रामीणों के बलिदान की निशानी माना जाता हैं। कहते हैं कि यह सड़क यहां आज भी मौजूद ह।

वर्ष 2018 में मनोहर लाल खटटर तिरंगा लेकर इस गांव में आये थे और मुलभुत सुविधाएं देने का वचन भी दिया था। मगर न तो उन्हें मुलभुत सुविधा मिली न ही अपनी परेशानियों से आज़ाद। यहीं कारण है कि ग्रामीण खुदको गुलाम मानते हैं और गांव में तिरंगा नहीं फहराने देते हैं क्योकि उनका मानना है वो अभी भी आज़ाद नहीं हुए हैं।

Leave a Comment

x