महाभारत के बारे में और इसके महान योद्धाओं के बारे में भला कौन नहीं जानता। बच्चों की किताबो में भी महाभारत का जिक्र किया गया है। यही कारण हैं कि आज का बच्चा बच्चा जानता हैं दानवीर कर्ण योद्धा केवल योद्धा नहीं थे बल्कि उन्होंने तो दान मांगने की इच्छा से आए किसी भी याचक को कभी निराश नहीं किया था।
आपको बता दें कि हरियाणा के अंतर्गत आने वाला जिला करनाल जिसका नाम करनाल का नाम राजा कर्ण के नाम पर पड़ा था। दानवीर राजा कर्ण रोज सुबह कर्णताल में स्नान कर भगवान शिव का जलाभिषेक कर अपने वजन के बराबर सोना दान करते थे।
करनाल जिले में अभी भी कर्णताल पार्क मौजूद है, जो राजा कर्ण को समर्पित है। पार्क में राजा कर्ण की एक बहुत बड़ी प्रतिमा है. साथ ही एक सरोवर भी बना हुआ है। उसी सरोवर में राजा कर्ण की प्रतिमा को लगाया गया हैं। राजा कर्ण की प्रतिमा के हाथों में धनुष है, उनके पास तीर कमान है और नीचे उनके रथ का पहिया है, जो राजा कर्ण के आखिरी बार दान देने के लिए प्रकट किए झरने को दर्शाता है।
ऐसे में राजा कर्ण के सम्मान इस जगह का नाम करनाल पड़ा।
महाभारत की वो कहानी जब युद्ध के आखिरी पड़ाव में जब कर्ण मृत्यु-शैय्या पर पड़े थे। तो भगवान कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण के वेश में उनके पास गए और उनसे स्वर्ण का दान करने के लिए कहा था। राजा कर्ण के पास उस समय सिर्फ एक स्वर्ण-दन्त था। जिसे निकाल कर राजा कर्ण ने श्रीकृष्ण को दान में देना चाहा।
लेकिन श्री कृष्ण ने इसे इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि स्वर्ण-दन्त अप्रक्षालित था और एक ब्राह्मण न उसे धो सकता था और न ही उसे धोने के लिए जल ला सकता था. इस पर राजा कर्ण ने भूमि पर एक बाण फेंका और तत्काल स्वच्छ जल का एक झरना फूटा.
झरने में बहते पानी से राजा कर्ण ने स्वर्ण-दन्त धोकर अपनी दानवीरता का आखिरी परिचय दिया था। यह कहानी हमारे लिए भी प्रेणादायक है जिससे हमें भी सिख लेनी चाहिए और अपने बच्चों को भी ऐसे तथ्य बताने चाहिए जिससे उन्हें भी अपने इतिहास से जोड़ा जा सकें।