हरियाणा में पहले महिला की शिक्षा पर सवाल उठते थे लेकिन धीरे धीरे जमाना बदल गया और लोग बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देने लगे, लेकिन क्या आप जानते है कि हरियाणा में एक ऐसा गांव है जहां हर घर में एक महिला टीचर है ।
हरियाणा के रेवाड़ी जिले में स्थित लुखी गांव अपनी अनोखी बेटियों की सफलता के लिए जाना जाता है। 4000 की आबादी वाले इस गांव में हर तीसरे घर से एक बेटी सरकारी नौकरी करती है।
इस गांव में शिक्षा को देवी-देवताओं से भी ज्यादा महत्व दिया जाता है। यहां किसी भी देवी-देवता का मंदिर नहीं है, बल्कि शिक्षा की पूजा होती है। लड़कों की तरह लड़कियों के जन्म पर भी कुंआ पूजन होता है।
गांव में जो व्यक्ति सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा होता है, उसे “पंडित जी” की उपाधि दी जाती है। लोग अपने सरनेम में जाति का प्रयोग नहीं करते और शादी के समय परिवार का कोई सदस्य ही पंडित बनकर रस्में निभाता है।
आजादी के बाद तक, लुखी गांव में बेटियों की शिक्षा पर सख्त पाबंदी थी। सोहनलाल यादव नामक एक व्यक्ति ने बेटियों की शिक्षा के लिए खुद स्कूल खोला। शुरुआत में भारी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन हार न मानते हुए उन्होंने अपने परिवार की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोगों का नजरिया बदलने लगा और शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा।
1966 में हरियाणा राज्य बनने के बाद पहली शिक्षक भर्ती में लुखी गांव की दो बेटियां सफल रहीं। तब से आज तक, शिक्षक बनने के लिए जितनी भी भर्तियां हुई हैं, उनमें से एक भी ऐसी नहीं है जिसमें इस गांव की बेटियों का चयन न हुआ हो। शिक्षिका बनने के बाद, कई बेटियां शादी के बाद भी गांव में ही रहती हैं और शिक्षा का दीप जलाती रहती हैं।
लुखी गांव बेटी शिक्षा और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। यह गांव पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है कि शिक्षा के माध्यम से कैसे लिंगभेद को मिटाया जा सकता है और महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है।
गांव के लोग अपने सरनेम के साथ जाति सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करते, बल्कि “कुमार” या “सिंह” लगाते हैं। शादी के समय, गांव के सबसे उम्रदराज और सबसे कम उम्र के बच्चे को लग्न के तौर पर 10-10 रुपए दिए जाते हैं।